Impact of COVID-19 on Young People _ Rapid Assessment in Three States%2C May 2020%2C Bihar%2C Rajasthan and Uttar pradesh Executive Summary %28Hindi%29

Impact of COVID-19 on Young People _ Rapid Assessment in Three States%2C May 2020%2C Bihar%2C Rajasthan and Uttar pradesh Executive Summary %28Hindi%29



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तीन रा�� म� युवाओं पर
को�वड-19 के �भाव का
��रत मू�ाकं न, मई २०२०
�बहार, राज�ान और उ�र �देश
कायक्र ारी सारांश

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लघुरूप
कोविड
ईई
एफपी
एफएलडब्ल्ूय
जीओआई
आईएफए
एमओएचएफडब्लूय्
एनजीओ
पीएफआई
पीएसए
आरएच
एसबीसीसी
एससी
एसटी
कोरोनवायरस रोग (कोरोनवायरस डिज़ीज)
मनोरजं क शिक्षा (एं टरटने मटंे एजकु े शन)
परिवार नियोजन (फै मिली प्लैनिंग)
प्रथम पंक्ति के कार्यकर्ता (फ्रं ट लाइन वर्कर्स)
भारत सरकार (गवर्टंेम आॅ फ इंडिया)
आयरन और फोलिक एसिड
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
(मिनिस्ट्री आॅ फ फै मिली एं ड वेल्फे अर)
गरै सरकारी सगं ठन (नाॅन गवर्टंमे आॅ र्ेनग ाइजश़े न)
पापॅ ुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया
लोक सेवा घोषणा (पब्लिक सर्िवस अनाउंसमेंट)
प्रजनन स्वास्थ्य (रिप्रोडक्टिव हले ्थ)
सामाजिक और व्यवहार परिवरतन् सचं ार
(सोशल एं ड बिहवे ्हियरल चेंज कम्यूनिके शसं )
अनुसूचित जाति (शडे यलू कास्ट)
अनसु ूचित जनजाति (शडे यलू ट्राइब)
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कारक्य ारी साराशं
कोविड-19 महामारी ने बहुत कम समय में दनु िया भर के देशों को अपने
घेरे मंे ले लिया ह।ै भारत के लिए, यह आज़ादी के बाद सबसे बड़ा
स्वास्थ्य और मानवीय सकं ट था और अभी भी बना हुआ ह।ै भारत सरकार
ने कोविड-19 को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया और इसके प्रसार को
रोकने के लिए 25 मार्च, 2020 को पूरे देश में पूर्ण तालाबंदी कर दी। यह
तालाबदं ी आज तक, राज्यों तथा क्षते ्रों में अनके रूपों और विविधताओ ं के
साथ ज़ारी ह।ै
महामारी और लंबी तालाबदं ी ने स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, आजीविका,
सामाजिक और व्यवसायिक सबं धं ो की क्रिया सहित कई क्ेषत्रों पर
प्रतिकू ल प्रभाव डाला ह।ै इसके कारण लाखों लोगों की आजीविका को
नकु सान पहँचु ा और प्रवासियों का शहरों से अपने गांवों में पलायन होने के
कारण मानव जीवन को भारी क्षति उठानी पड़ी।
प्राथमिकताओ ं को कै से प्रभावित किया ह,ै यह जानने के लिए एक त्वरित
मूल्यांकन किया। इससे उत्पन्न प्रतिक्रियाओ ं का विश्षेल ण उन उपायों की
परै वी करने के लिए किया जाएगा, जो इन ज़रूरतों को कोविड-19 के
प्रकोप के दौरान, और उसके बाद, दोनों स्थितियों मंे संबोधित करना जारी
रखने मंे समर्थ हों।
तालाबंदी के दौरान, प्रत्यक्ष रूप से बातचीत करने की कठिनाई को ध्यान
मंे रखते हुए, एक टले ीफोनिक सर्वेक्षण को डेटा सगं ्रह का सबसे उपयकु ्त
तरीका माना गया। सर्वेक्षण प्रश्नावली विकसित की गई और कलेक्ट
(collect), एक मोबाइल डेटा कलके ्शन प्लेटफ़ॉर्म के लिए डिजिटाइज़
की गई। सर्वेक्षण तीन राज्यों - उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार - मंे
आयोजित किया गया, जहाँ पीएफआई के राज्य कार्यालय हैं और युवाओ ं
के साथ कारक्य ्रम चल रहे ह।ैं
यद्यपि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने अपने
दिशानिर्देशों में प्रजनन स्वास्थ्य और परिवार नियोजन को आवश्यक
स्वास्थ्य सवे ाओ ं के रूप में शामिल किया ह,ै लेकिन तालाबदं ी और
सार्वजनिक स्वास्थ्य मशीनरी का ध्यान महामारी के प्रसार को रोकने पर
कंे द्रित होने के कारण, महिलाओ ं की आवाजाही और स्वास्थ्य सेवाओ ं तक
पहँचु प्रतिबधं ित हुई।
कोविड-19 का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकू ल प्रभाव, विश्व स्तर पर धीर-े
धीरे लके िन अब लगातार उभरने लगा ह।ै चीन, यकू े , यूएसए और भारत
जैसे देशों में जडें र-आधारित और आत्मीय साथी द्वारा हिंसा बढ़ी है और
मनोवैज्ञानिक सकं ट, क्रोध, अवसाद (डिप्रेशन) और अभिघातजन्य तनाव
(पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्सरै ) विकार का उच्च प्रसार हुआ ह।ै
भारत में यवु ाओ ं में बाधित प्रजनन स्वास्थ्य सवे ा और मानसिक
स्वास्थ्य पर परिणामों की गंभीर रूप से खोजबीन करनी होगी। देश की
आबादी का लगभग एक-पाचँ वाँ हिस्सा बनाने वाले किशोर, शैक्षिक
अनिश्चितताओ ं (स्ूक लों और कॉलजे ों के बंद होने, और डिजिटल शिक्षा
के लिए अव्यवस्थित पहचँु के कारण), अपनी गतिशीलता, स्वतंत्रता
और समाजीकरण पर प्रतिबंध, घरले ू कामों मंे बढ़ोतरी, घरले ू संघर्ष
(जो अधिकतर महिलाओ ं को प्रभावित करता ह)ै , और अपने रोजग़ार की
सभं ावनाओ ं के बारे मंे चिंताओ ं का सामना कर रहे ह।ैं
भारत के युवा इन चुनौतियों का सामना कै से कर रहे हैं यह समझने के
लिए, पापॅ ुलेशन फाउंडेशन आॅ फ इंडिया (पीएफआई) ने कोविड-19 के
प्रति यवु ा आबादी (15-24 वर्ष) के ज्ञान और दृष्टिकोण के स्तर और
इसने उनके जीवन और मानसिक स्वास्थ्य, उनकी आवश्यकताओ ं और
तीन राज्यों में जिलों, ब्लॉकों और उत्तरदाताओ ं का चयन सप्रयोजन
और साथी ससं ्थाओ ं की उपस्थिति और यवु ाओ ं के सपं र्क विवरण की
उपलब्धता के आधार पर किया गया था। इसका उद्देश्य शोध प्रश्नों पर
उत्तरदाताओ ं से विभिन्न दृष्टिकोण और अं तर्दृष्टि प्राप्त करना था।
मुख्य जाचँ परिणाम
त्वरित आं कलन से पता चला कि भारत में युवा, कोविड-19, इसके
लक्षणों, देखभाल और सरु क्षा उपायों से अच्छी तरह से वाकिफ थे। लेकिन
साथ ही साथ तालाबंदी के दौरान उन्ंेह कु छ चुनौतियों का सामना करना
पड़ रहा ह,ै जिसमें प्रजनन स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य तक उनकी पहुँच
भी शामिल ह।ै मुख्य जाचँ परिणाम नीचे संक्षेप मंे दिए गए हःैं
जागरूकता
z कोविड-19 के लक्षणों पर उत्तरदाताओ ं की जागरूकता काफी
अधिक थी; अधिकांश युवा कम से कम दो प्रमुख लक्षणों, जसै े कि
खासं ी, बुखार, सासं लने े मंे कठिनाई और शरीर मंे दर्द - की पहचान
करने में सक्षम थे। उत्तरदाताओ ं को बनु ियादी सुरक्षा और रोकथाम
के तरीकों - जसै े कि बार-बार हाथ धोना, चहे रे को ढंकना और
सामाजिक दरू ी बनाए रखना - पर बहुत अच्छी जानकारी थी। भारी
बहुमत ने इन अभ्यासों का ध्यान से पालन करने की सूचना भी दी।
अधिकाशं युवावों द्वारा तालाबदं ी का पालन किया जा रहा था, जो
अध्ययन के समय देशव्यापी था।
z आम तौर पर, उम्र में बड़े, और उच्च स्तर की शिक्षा वाले परु ुषों को,
महिलाओ ं और शिक्षा के निचले स्तर वाले युवा समूहों की तुलना
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कारयक् ारी साराशं
में बेहतर जानकारी थी। सामाजिक रूप से हाशिए वाले समूहों जैसे
एससी और एसटी मंे लक्षणों की जागरूकता कम थी।
z यवु ाओ ं के लिए सचू ना का प्राथमिक स्रोत अभी भी पारपं रिक
मीडिया जसै े टीवी और नीतिगत बैठकंे , और क्ेषत्रीय स्तर पर
कारकय् र्ताओ ं - एफएलडब्ल्ूय (फ्ंर ट लाइन वर्कर्स) से आमन-े सामने
बातचीत करना ही ह।ै एक और सामान्य माध्यम व्हाट्सएप्प था,
हालाँकि अन्य डिजिटल तकनीक पर निर्भर पोर्टल्स जैसे ट्विटर,
आरोग्य सेतु ऐप और फे सबकु , जानकारी के सामान्य स्रोत नहीं थे।
z स्ूक लों को शायद ही कभी सूचना के स्रोत के रूप में सूचीबद्ध किया
गया था, जो शैक्षणिक ससं ्थानों की अपने परिसरों और शिक्षा सत्र
के बाहर छात्रों के साथ जुड़े रहने की अक्षमता को दर्शाता ह।ै लेकिन
यहाँ, राज्य, एक दसू रे से सर्वोत्तम प्रथाओ ं का अनुकरण करना सीख
सकते हःंै उदाहरण के लिए, राजस्थान मं,े कु ल उत्तरदाताओ ं में से
एक-चैथाई ने स्कू लों को कोविड-19 पर सचू ना के एक विश्वसनीय
स्रोत के रूप में सचू ीबद्ध किया।
z अधिकांश उत्तरदाताओ ं ने यह भी कहा कि अगर उनमंे या उनके
किसी जानने वाले अन्य व्यक्ति में लक्षण नज़र आए तो वे डॉक्टर
से संपर्क करगें े, सेल्फ-आइसोलशे न करगंे ,े और चिन्हित करने में
सहायता प्रदान करगंे ।े एक बड़ी संख्या ने यह भी कहा कि वे अपने
लक्षणों को दरू करने के लिए एफएलडब्लय्ू या प्रधान से संपर्क
करगंे े और आगे के रास्ते पर सलाह लंगे े।
z स्थानीय ज़मीनी स्तर के व्यक्तियों और ससं ्थानों, जसै े एफएलडब्लयू्
का सूचना के विश्वसनीय स्रोत और कोविड-19 के सदं िग्ध मामले
मंे उनका प्रथम सपं र्क होना, उनकी प्रासगं िकता और सार्वजनिक
स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने में इन संस्थानों के महत्व को
दोहराता ह।ै आगे बढ़ते हुए, इनको अधिक से अधिक सशक्त, तयै ार
और सदु ृढ़ करना आवश्यक ह।ै
चुनौतियाँ
z देशव्यापी तालाबंदी के साथ यवु ाआं े ने जिन प्राथमिक चनु ौतियों का
सामना किया, उनमें से एक घरले ू काम के भार में बढ़ोतरी थी। उम्मीद
के अनुसार, पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओ ं ने अपने घरले ू
काम का भार बढ़ने के बारे मंे बताया।
z घरले ू संघर्षों मंे बढ़ोतरी या घर पर झगड़े के वल एक-चथै ाई
प्रतिभागियों द्वारा रिपोर्ट किए गए थे। घरले ू झगड़े बढ़ने की रिपोर्ट
करने वालों मंे महिलाएँ अधिक थीं।
z उत्तरदाताओ ं की एक छोटी सखं ्या ने तालाबंदी के दौरान आर्थिक
चिंताओ ं के बारे में सचू ना दी और इनमें से अधिकांश पहले से ही
काररय् त थे, तालाबंदी के बाद वे जो बरे ोजग़ार थे और सक्रिय रूप से
नौकरी की तलाश कर रहे थ।े
z कु ल उत्तरदाताओ ं में से आधे से अधिक ने तालाबदं ी के दौरान
अधिक टीवी देखने की सूचना दी, जबकि आधे से कम ने अपने
सोशल मीडिया के उपयोग बढ़ने की सचू ना दी। हालाँकि, उनमंे से
कई जिन्होंने अपने टीवी या सोशल मीडिया देखने मंे कमी की सूचना
दी, वे महिलाएँ थीं।
z कु ल उत्तरदाताओ ं के एक छोटे हिस्से ने उदासी, निराशा और
चिड़चिड़ा महसूस करने की सचू ना दी। दिलचस्प और सयं ोग की
बात यह है कि जिन लोगों ने बड़ी संख्या मंे निराशा या उदासी और
चिड़चिड़ा महसूस करने की सूचना दी, उन्होंने तालाबंदी के दौरान
टीवी और सोशल मीडिया के उपयोग मंे बढ़ोतरी की सूचना भी दी।
यह प्रवतृ ्ति क्या सकं े त देती है उसे समझने के लिए अधिक गहराई से
गणु ात्मक शोध करने की आवश्यकता ह।ै
प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच
z हालाँकि 5 में से लगभग 3 उत्तरदाताओ ं ने तालाबंदी के दौरान
एफएलडब्ल्ूय के साथ कु छ सपं र्क होने की सूचना दी, तालाबंदी के
दौरान प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओ ं तक उनकी पहुचँ बाधित हुई।
z आधे से अधिक महिलाओ ं ने सैनिटरी पैड की आवश्यकता पूरी न
होने की सूचना दी और के वल एक-तिहाई युवाओ ं ने तालाबदं ी के
दौरान आईएफए गोलियां मिलने की पुष्टि की। अधिकाशं यवु ाओ ं
को यह भी पता नहीं था कि तालाबंदी के दौरान एफएलडब्ल्ूय
गर्भनिरोधक प्रदान कर सकते ह।ंै
मानसिक स्वास्थ्य सवे ाएं
z आधे से अधिक यवु ाओ ं ने पुष्टि की कि उन्ंहे मानसिक स्वास्थ्य के बारे
में जानकारी पर पहँुच थी और उनमें से लगभग आधे यवु ाओ ं ने कहा
कि उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य सेवा या संसाधन का किसी न किसी
रूप में उपयोग किया। उत्तर प्रदेश में 89% महिलाओ ं ने तालाबंदी के
दौरान कु छ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओ ं का उपयोग करने की सचू ना
दी।
z मानसिक स्वास्थ्य सवे ाओ ं की ज़रूरत वाले लोगों में से लगभग सभी
ने पाया कि दी गई सहायता उनके लिए उपयोगी या बहुत उपयोगी
थी।
z जिन विभिन्न संसाधनों का उपयोग किया गया, उनमंे से अधिकांश-
स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओ ं के साथ आमन-े सामने बातचीत, दोस्तों
के साथ बातचीत और टीवी - बताए गए। स्वास्थ्य देखभाल पर
सचू नाओ ं के अनौपचारिक माध्यम, जैसे दोस्त या टीवी शो, सबसे
आदर्श तरीके नहीं ह,ंै क्योंकि प्रदान की जाने वाली जानकारी की
सटीकता की जाचँ नहीं की जाती और देखभाल प्रदान करने वाले
उसके लिए प्रशिक्षित नहीं होते ह।ैं
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तीन राज्यों मंे यवु ाओ ं पर कोविड-19 के प्रभाव का त्वरित मूल्यांकन
आवश्कताएँ और प्राथमिकताएँ
सिफारिशंे
त्वरित मूल्यांकन के जाँच परिणामों के आधार पर, हमने युवाओ ं की
निम्नलिखित मुख्य आवश्यकताओ ं और प्राथमिकताओ ं की पहचान की ह,ै
जिन्ंेह महामारी के दौरान और उसके बाद भी बनाए रखा जाना ज़रूरी ह।ै
z प्रजनन स्वास्थ्य तक पहँुचः जसै ा कि महामारी ने दिखाया है और
हमारे मूल्यांकन ने दोहराया ह,ै कोविड-19 के प्रकोप के दौरान
प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओ ं तक पहुँच को एक झटका लगा ह।ै युवाओ ं
ने ऐसी सेवाओ ं के लिए अधरू ी ज़रूरतों की सूचना दी, क्योंकि भारत
की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का ध्यान महामारी के नियतं ्रण और
प्रबधं न पर कें द्रित था।
z मानसिक स्वास्थ्य देखभालः युवाओ ं ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल
सेवाओ ं की आवश्यकता व्यक्त की है और जिन लोगों ने इनका
उपयोग किया, उन्होंने इसे सकारात्मक रूप से प्रभावशाली पाया।
हालाँकि, कई युवाओ ं के लिए, मानसिक स्वास्थ्य के अनौपचारिक
तरीके - जैसे कि दोस्तों के साथ बातचीत - उपलब्ध ससं ाधनों
से अधिक प्रबल ह।ंै इन अनौपचारिक स्रोतों को अनिवारय् रूप से
सत्यापित नहीं किया जाता है और वे जो सूचना या मध्यस्थता प्रदान
करते ह,ैं वह आवश्यक रूप से जाचँ ी नहीं जाती या उचित नहीं
होती। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य सवे ाओ ं के औपचारिक तरीकों
को विकसित और सुव्यवस्थित करने की तत्काल आवश्यकता है
जो प्रशिक्षित हों, विश्वसनीय हों और जो युवाओ ं के लिए आसानी से
सुलभ हों।
z महिलाओ ं पर देखभाल का दगु ना भारः पुरुष प्रतिभागियों की
तुलना मंे महिला प्रतिभागियों ने अपने घरले ू काम के साथ-साथ
घर पर होने वाले झगड़े बढ़ने की अधिक अनुपात मंे सूचना दी। यह
संबदं ्ध आं कड़ों मंे भी नज़र आया, जैसे कि अधिक महिलाओ ं ने अपने
टीवी और सोशल मीडिया के उपयोग में कमी बताई (सभं वतः उनके
बढ़ते कार्यभार के कारण जो मनोरजं न के लिए कम समय देता ह)ै ,
और उत्तर प्रदेश मंे महिलाओ ं के एक बड़े हिस्ेस ने महामारी के दौरान
कु छ मानसिक स्वास्थ्य सवे ाओ ं का उपयोग करने की सचू ना दी ह।ै
घरले ू कारभ्य ार साझा करने पर सामाजिक सदं ेश और मानसिक
स्वास्थ्य सेवाओ ं की आसान उपलब्धता के माध्यम से, इस पर
तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता ह।ै
z परु ुषों मंे आर्थिक चिंताः कु छ परु ुषों ने महामारी से आर्थिक पतन
के बारे में चिंतित होने की सूचना दी; जो पुरुष पहले से कारयर् त
थ,े ज्यादातर उन्होंने चिंता व्यक्त की और तालाबंदी के बाद जो
बेरोजग़ार थ,े लके िन सक्रिय रूप से रोजग़ार की तलाश कर रहे थे।
कोविड-19 के मद्ेदनजर मानसिक स्वास्थ्य सवे ाओ ं को आर्थिक चिंता
को ध्यान में रखना चाहिए और इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए
सुसज्जित होना चाहिए।
यवु ाओ ं की उपरोक्त आवश्यकताओ ं को संबोधित करने के लिए,
निम्नलिखित रणनीतियों का सुझाव दिया गया हःै
z सामाजिक रूप से हाशिए के समदु ायों मंे सचू ना और प्रसार
को मज़बतू करनाः वरम्त ान महामारी जसै े सार्वजनिक स्वास्थ्य
आपातकाल के दौरान प्रसारित होने वाली सूचनाओ ं के मखु ्य संदेशों
को मज़बूत करने की आवश्यकता ह।ै इस जानकारी को सामाजिक
रूप से हाशिए के समुदायों जसै े कि एससी और एसटी तक पहँचु ाने
के लिए ठोस प्रयास किए जाने की ज़रूरत ह।ै इस कार्य को टीवी
पर लक्षित लोक सवे ा घोषणा (पीएसए), व्हाट्सएप्प के माध्यम से
संचार और फ्रं ट लाइन वर्कर्स (एफएलडब्ल)ूय् द्वारा घर-घर जाकर
पूरा किया जा सकता ह।ै
z पहली पंक्ति के कारत्य ाओ ं को प्रशिक्षित करनाः एफएलडब्लय्ू
- सचू ना के स्रोतों के रूप म,ंे प्राथमिक स्वास्थ्य सवु िधाओ ं तक
पहँुचने के लिए, संदिग्ध लक्षणों की रिपोर्टिंग के लिए और मानसिक
स्वास्थ्य सबं ंधी जानकारी के स्रोतों के रूप मंे - कई भूमिकाओ ं मंे
महत्वपूर्ण रह।े बहु-स्तरीय और ज़मीनी स्तर के कर्मियों के रूप मंे,
एफएलडब्लयू् भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की नींव का
प्रतिनिधित्व करते ह।ैं उन्ंहे मज़बूत बनाने, प्रशिक्षण देने और सशक्त
बनाने मंे समय और ससं ाधनों का निवेश करना, महामारी के दौरान
और आग,े दोनों में हमारे काम आएगा।
z प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओ ं को प्राथमिकताः जैसा कि महामारी
ने दिखाया है और हमारे आं कलन ने दोहराया है, कोविड-19 के
प्रकोप के दौरान प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओ ं और परिवार नियोजन
से संबंधित सेवाओ ं तक पहुँच को एक झटका लगा है। युवाओ ं
ने ऐसी सेवाओ ं से जुड़ी अधूरी ज़रूरतों की सूचना दी, क्योंकि
भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का ध्यान महामारी के
नियंत्रण और प्रबंधन पर कंे द्रित था। इसलिए, प्रजनन स्वास्थ्य
के लिए निरंतर प्राथमिकता की पैरवी करने की आवश्यकता
है। एफएलडब्ल्यू को प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओ ं को प्रभावी और
लगातार बनाए रखने के लिए बेहतर संसाधनों से सुसज्जित करने
की आवश्यकता है। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए
कि प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं बाधित न हों, सार्वजनिक बहस के
स्तर पर लगातार यह दोहराए जाने की आवश्यकता है कि प्रजनन
स्वास्थ्य, सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक मौलिक और अटूट पहलू
है। यह भी कहने की ज़रूरत है कि इसकी गुणवत्ता की प्रदानगी
एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता है और विशेष रूप
से एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के समय में। प्रासंगिक
सामाजिक संगठनों को इस ओर शासन के विभिन्न स्तरों के साथ
सहयोग और काम करने की आवश्यकता है।
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कार्कय ारी साराशं
z सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन के लिए समान लिंग सामान्य
मानदंडः हमारे शोध ने इस बात पर प्रकाश डाला कि परु ुषों की
तुलना मंे अधिक महिलाओ ं ने अपने कार्भय ार में बढ़ोतरी का अनभु व
किया, घरले ू झगड़े की सूचना दी और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल
सवे ाओ ं का इस्तेमाल किया। ये आँ कड़े संबंधित हैं जो किसी भी
सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान महिलाओ ं पर देखभाल
के दोहरे बोझ को प्रदर्शित करते ह।ंै सरकारी एजेसं ियों और
सामाजिक संगठनों को सामाजिक मानदंडों को संबोधित करने और
चुनौती देने के लिए ठोस प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है जो
परपं रागत रूप से देखभाल का बोझ महिलाओ ं पर डालते ह,ंै जिनका
उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव होता ह।ै परु ुषों और महिलाओ ं
दोनों मंे टीवी देखने की उच्च व्यापकता को देखते हुए, सामाजिक
परिवरत्न के लिए एडु टने मंेट यानी मनोरजं न परक शिक्षा अपनाना
सही दिशा में एक कदम ह।ै
z मानसिक स्वास्थ्य सवे ाः औपचारिक और प्रशिक्षित तरीकों
के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सवे ाओ ं को युवाओ ं की बढ़ती
आवश्यकताओ ं और उपयोग को देखते हुए बढ़ाया जाना
चाहिए। ऐसे अधिक ससं ाधनों की पहचान करने और शामिल करने
की आवश्यकता है जो युवाओ ं को सेवा प्रदान कर सकते ह,ैं
जैसे स्वयं सहायता किट, व्हाट्सएप्प समुदाय, फोन हले ्पलाइन,
और अनभु वी काउंसलर और शिक्षकों को प्रशिक्षण देना।
फ्रं ट लाइन वर्कर्स (एफएलडब्ल)ूय् जो मानसिक स्वास्थ्य चिंताओ ं
को संबोधित करने के लिए सबसे विश्वसनीय और सामान्य स्रोतों में
से एक ह,ंै उन्हंे आगे चलकर यवु ाओ ं के मानसिक स्वास्थ्य चिंताओ ं
को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए प्रशिक्षित किया जा
सकता ह।ै विभिन्न सामाजिक संगठन पहले से ही इस क्षेत्र में काम
कर रहे हैं और सबं ंधित सरकारी एजंेसियों के साथ उनके सहयोग की
सिफारिश की जाती ह।ै
z शकै ्षिक ससं ्थानों की परु ्नकल्पना करनाः स्कू ल विश्वसनीय जानकारी
के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले स्रोत नहीं थे और न
ही वे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की निरतं र प्रदानगी या आयरन
फोलिक (आईएफए) की गोलियों तक पहुँच के लिए महत्वपूर्ण
स्रोत थे। एक तरह से शिक्षण संस्थानों की परु ्न कल्पना की ज़रूरत
ह,ै जो छात्रों के साथ गहरे संबधं और बातचीत को बढ़ावा दें और
के वल छात्रों के स्ूक ल या शकै ्षणिक सत्र में होने तक सीमित न हों।
आगे बढ़ने जाने का एक तरीका व्हाट्सएप्प ग्रुप और समुदायों को
उपयोग करना ह।ै शिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य सेवा देने के लिए
प्रशिक्षित करना, छात्रों और शकै ्षणिक ससं ्थानों के बीच घनिष्ठ संपर्क
को मज़बूत कर सकता ह।ै
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